रामेश्वरी नादान (सुनीता) की कलम से-

               
बचपन से लिखने पढने का शौक रहा है, पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद माँ को हम दोनो भाई-बहन के लालन-पालन के लिए नौकरी करनी पडी. घर पर मैं और मेरा भाई दिन भर अकेले रहते. जब मैं स्कूल जाती, तो भाई अकेले रहता और जब दिन में मैं आ जाती तो भाई स्कूल चला जाता. इस प्रकार वक्त के साथ हम दोनों भाई बहन बढते चले गये. एक दिन  भाई ने एक डायरी लाकर दे दी कहा और कि जब टी.बी से बोर हो जाओ तो डायरी में जो दिल करे लिखा करो, जिससे अकेला पन ना लगे. बस फ़िर क्या था, रफ कॉपी में अंकित छोटी-छोटी बाते, कविता, विचार मैं अब डायरी में लिखने लगी.  दिनों दिन मेरा लिखने का शौक बढता गया. कभी कभी किसी अखबार में छप जाता, तो मैं खुशी से झूम उठती. वक्त का पहिया मेरे लेखन के साथ घूमता गया.  लेखन को गंभीर रुप से कभी लिया नही न लेखन में कभी कोई गुरू ही मिला. कुछ मिले भी तो प्रोत्साहित करने की बजाय कहते है कि आजकल पढता ही कौन है ?

वो भी हिंदी कविता. ये सुनकर निराशा होती.  शायद इसी वजह से लेखन मेरी तन्हाईयों में धीरे- धीरे दम तोड़ने लगा. शादी होने के बाद घर परिवार में लेखन को एकदम भुल सी गयी. कुछ समय बाद बेटे का जन्म हुआ. बेटे के लिए लोरी लिखने लगी, डायरी में कैद होने लगी फ़िर से कविता और कहानी.


बेटा प्ले स्कूल में जाने लगा. मै एक दिन स्कूल लेने गयी, तो एक महिला ने पूछा आप क्या करती हो? मैने कहा हाउस वाइफ हूँ.  ये सुनकर उसने अजीब सा मुहँ बनाया, जैसे हाउस वाइफ होना गुनाह था. मैने कहा आप क्या करती हो, तो उसने इठलाते हुए कहा मैं बिजनेस वूमैन हूँ मेरा अपना काम है. घर पर नौकरानी है, वो आज नहीं आयी तो मुझे आना पडा बेटे को लेने. फ़िर वो बोली नौकरी नही करती हो, तुम पूरा दिन घर का काम उफ्फफ़ बडा बोरिंग होता होगा न दिन भर घर में रहना.  मैने कहा हाउस वाइफ होना भी तो गर्व की बात है. उनकी भी अपनी पहचान होती है.  उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया.  पर मेरे दिलों दिमाग में उसकी बात घर कर गयी. हाउस वाइफ को  पहचान दिलानी थी मुझे. घर आकर अपनी डायरी खोली पुरानी कविताओ को पढा फ़िर सुधार कर पत्रिका में भेज दिया. प्रयास सराहनीय रहा.


बस फ़िर क्या था घर के कामो से जब भी समय मिलता लिखने पढने बैठ जाती. धीरे-धीरे लेखन में गंभीरता आने लगी. पत्र-पत्रिकाओ से पहचान मिलने लगी. लेखन रुकने नहीं दिया. पहली फ़िर दूसरी इसी तरह 5 कविता संग्रह प्रकाशित कर दिये. साथ ही एक कहानी संग्रह भी. हाउस वाइफ के साथ अब सम्मान से लेखिका और कवयित्री जुड़ गया. सम्मान मिलने लगा. जो लोग कहते थे कुछ नहीं करती हो आप, आज वो सम्मान से हाथ जोड़कर नमस्कार करते मिलने पर. 26 नवम्बर स्टार वूमैन आवार्ड जोधपुर में अपने नाम का चयन का जब पता चला तो खुशी की लहर उठ गयी. और लगा अब कोई हाउस वाइफ़ को देखकर ये नहीं कहेगा की हाउस वाइफ हो, तुम बोर नही होती घर पर पूरा दिन. मैं गर्व से कहती हूँ मैं हाउस वाइफ हूँ. सम्मान हमारा भी है, परिवार को सम्भालकर रखना, निस्वार्थ सेवा करना अतुलनीय है. हाउस वाइफ भी आगे बढकर परिवार का नाम रोशन कर सकती है बस जरूरत है उसके हुनर को पहचाने की.







           
*  रामेश्वरी नादान *
         71 सी कामना सैक्टर -5
        
वैशाली,  गज़ियाबाद 201012
Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours