टिहरी गढ़वाल / मसूरी आज तक संवाददाता (वीरेंद्र वर्मा) भारतीय लोक संस्कृति व सभ्यता की झलक प्रखण्ड जौनपुर, जौनसार व रवांई में आज भी देखी जाती है। जहाँ मंगसीर माह में ग्रामीणों द्वारा बडी दीपावली (बूढी दीपावली) धूमधाम से पौराणिक संस्कृति के साथ मनाई जाती है। यह पर्व दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। कई स्थानों पर बड़ी दीपावली को बूढ़ी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।
रविवार को प्रखण्ड जौनपुर, जौनसार व रवांई के विभिन्न क्षेत्रों में पांच दिन तक चलने वाली बडी दीपावली (बूढ़ी दीपावली) सामूहिक रूप में मनाई जा रही है। ग्रामीणों द्वारा असके, पकोडे, पूरी, चूडा आदि विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर समस्त ग्रामवासियों ने बारी-बारी से सभी के घरों में दावत उड़ाई और साथ में जौनपुर की कच्ची सूर (शराब), घणी सूर, पाखली सूर का स्वाद भी जमकर उड़ाया।
इस मौके पर सामूहिक तौर पर गांव की ध्याणी, रयणी, बूढे, बच्चों व दूर दराज के मेहमानो द्वारा पंचायती आंगन में पौराणिक लोक संस्कृति के आधार पर रासो, तांदी, झेंता व अनेक मनमोहक प्रस्तुतियां दी गयी। और अनेक बड़े बड़े गाँवों में बाबई नामक घास से भाण्ड़ (मोटा रस्सा) तैयार किया गया, जिसके बाद रात को ग्रामीणों द्वारा उससे रस्सा कस्सी का खेल खेला गया। और पूरी रात भर ढ़ोल दमाऊ के साथ स्थानीय लोग नृत्य करते रहे।
जौनपुर, जौनसार व रवांई में आज भी लोक संस्कृति की एक पहचान है। इस संस्कृति को देखने व लुप्त उठाने के लिए देश विदेश के पर्यटक भी इस संस्कृति के कायल है ।
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Text ravindra
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