बहादूर नायक दरवान सिंह नेगी |
प्रथम
विश्वयुद्ध के दौरान, शहीद हुए भारतीय सेना के दो सैनिकों का अंतिम
संस्कार समारोह फ्रांस के ला जार्ज, सैन्य कब्रिस्तान में 12 नवम्बर को
मनाया जाएगा
20 सिंतबर, 2016 को पेरिस से लगभग 230 किमी की दूरी पर लेवेन्टी सैन्य
कब्रिस्तान के निकट, रिचबोर्ग गांव की दक्षिण दिशा की ओर, उत्खन्न कार्य के
दौरान दो मानव अवशेष पाए गए। उनके सामान की जांच करने पर, उनकी पहचान 39वे
रॉयल गढ़वाल रायफल्स के हताहतों के रूप में हुई। राष्ट्रमंडल युद्ध कब्र
आयोग (सीडब्लयूडब्लयूजीसी) के कार्यालय ने फ्रांस सरकार और फ्रांस में
भारतीय दूतावास से परामर्श करके, इन भारतीय सैनिकों का अंतिम संस्कार
समारोह, लेवेन्टी सैन्य कब्रिस्तान में, पूरे सैनिक सम्मान के साथ करने का
निर्णय लिया है। इस समारोह में भाग लेने के लिये भारतीय सेना की ओर से
गढ़वाल रायफल्स रेजीमेन्टल केन्द्र के कमान्डेन्ट, गढ़वाल रायफल्स
रेजीमेन्टल पाइप बैन्ड के दो बेगपाइपर्स (मशकवादक), और फैस्टूबर्ट के युद्ध
के बहादुर नायक स्वर्गीय नायक दरवान सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रास के पौत्र
कर्नल नीतिन नेगी को मनोनीत किया गया है। इसी क्रम में, शहीद सैनिकों की
कब्र की मिट्टी को उनकी गृह भूमि पर वापस लाया जाएगा।
प्रथम/39वीं और द्वितीय/39वीं रॉयल गढ़वाल रायफल्स की गढ़वाल ब्रिगेड ने
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस और फ्लैंडर्स की उन खतरनाक खाइयों में
अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया था। ब्रिटिश और भारतीय सैना ने कंधे से कंधा
मिलाकर यह लड़ाई लड़ी और अपना कर्तव्य निभाते हुए शहादत पाई। गढ़वाल
ब्रिगेड ने फ्रांस और फ्लैन्डर्स थियेटर में 6 युद्ध सम्मान और दो
विक्टोरिया क्रास प्राप्त किये।
इस पवित्र अवसर पर, भारतीय सेना प्रमुख, भारतीय सेना की ओर से ब्रिगेडियर
इन्द्रजीत चटर्जी और गढ़वाल रायफल्स रेजीमेन्टल केन्द्र के कमान्डेन्ट और
सूबेदार मेजर त्रिलोक सिंह नेगी द्वारा भारतीय मेरठ डिवीजन के शहीदों को
नुवे चैपेल युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी।
बता दें दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1883 को भारत के करबर्तिर गांव में हुआ
था। प्रथम विश्वयुद्ध दौरान वह 39वीं गढ़वाल राइफल्स की 1ली बटालियन में
नायक (कॉरपोरल पद के समकक्ष) थे। 23 की रात से 24 नवंबर 1914 को उनकी रेजिमेंट फेस्तुबर्त के निकट दुश्मन
से ब्रिटिश खाईयों को वापस हासिल करने का प्रयास कर रही थी। दो बार सिर और
बांह में घाव लगने और राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच
होने के बावजूद दरवान सिंह नेगी उन प्रथम सैनिकों में थे, जिन्होंने खाइयों
में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराया। दरवान सिंह नेगी को उनकी
अनुपम वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया, उनकी प्रशस्ति
में लिखा है:
23-24 नवंबर की रात, फ्रांस के फेस्तुबर्त के निकट
जब रेजिमेंट दुश्मन से अपनी खाइयों को वापस लेने का प्रयास कर रही थी उस
दौरान, और दो बार सिर और बांह में घाव लगने और निकट से हो रही राइफलों की
भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद खाइयों में घुसकर
उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराने में दिखाई गई उनकी अनुपम वीरता के
लिए।
बाद में वह सूबेदार पद (कैप्टन के समकक्ष) से भारतीय सेना से सेवामुक्त
हुए। दरवान सिंह नेगी की मृत्यु 1950 में हुई। उत्तराखंड के लैंसडाउन स्थित
गढ़वाल राइफल्स के रेजिमेंटल म्यूजियम का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर
रखा गया है।
Post A Comment:
0 comments so far,add yours