टिहरी। वर्ष 2001 में प्रताप नगर क्षेत्र को टिहरी से जोड़ने वाले एकमात्र मोटर सेतु के टिहरी झील में समां जाने के बाद 2006 में डोबरा-चांटी पुल के निर्माण का खाका तैयार किया गया था, जो कि तब से लगभग 10 बरस बीत जाने के बाद भी बनकर तैयार नहीं हो पाया है, जबकि पुल निर्माण कार्य में अब तक करोडों रुपये खर्च हो चुके हैं। अब क्षेत्र के लोगों का धैर्य भी जबाब देने लगा है और अब डोबरा-चांटी पुल के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की मांग उठने लगी हैं।



बता दें कि 2002 में ही एनडी तिवारी सरकार में पुल निर्माण को स्वीकृति मिली थी, और कुछ समय बाद ही इसका सर्वे का काम शुरू किया गया था। 2006 में पुल निर्माण का खाका तैयार हुआ लेकिन 2007 में भाजपा के सत्ता में आते ही पुल के डिजाइन में कमी पाई गई और पुल के निर्माण कार्य को रोक दिया गया। तब से अब तक पुल के डिजाइन की रजिस्ट्री सहित सर्वे और टॉवरों में करीब 145 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो गए हैं, लेकिन तब से लेकर अब तक इस पुल का दुर्भाग्य यह है कि यह मात्र चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है। जानकारी के मुताबिक लोनिवि ने डिजाइन बनने से पहले ही करीब 80 करोड़ का सामान खरीद लिया था। 2015 में गढ़वाल कमिश्नर द्वारा की गयी जांच में लोनिवि अफसरों की गलती की बात सामने भी आई, लेकिन अब तक किसी पर कोई भी कार्रवाई नहीं हो पाई है। बहरहाल, इतने सालो में जो भी सरकारे रही हो, किसी ने भी अभी तक इस क्षेत्र के लोगो की परेशानियों को नही समझा, बल्कि उल्टे यहाँ के जनमानस की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए सत्ता का सफ़र तय किया। कहा जा सकता है कि यह पुल एक ऐसा चुनावी जुमला बन गया, जो हर चुनाव में यहाँ के सांसद, विधायक को सत्ता का सफ़र तय कराते हैं, लेकिन जनता हर बार ठगी जाती है। यहाँ के निवासियों का डोबरा-चांटी पुल आज भी मात्र एक सपना बनकर रह गया। 

स्थानीय जनता का मानना है कि पुल के निर्माण में लगी कंपनी के खिलाफ जांच होनी चाहिए। और जांच की मांग हो भी क्यों नही इस क्षेत्र की जनता आज तक उस सजा को भुगत रही, जिसमे उनका कोई दोष नहीं। पुल निर्माण में लगी कंपनी से हुए समझौते के मुताबिक पुल को अगस्त 2017 तक बनकर तैयार हो जाना चाहिए था, लेकिन पुल निर्माण में लगी गुप्ता एसोसिएट और अधिकारियों के उदासीनता के कारण समय से पुल का निर्माण नहीं हो पाया। कंपनी और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ जांच की किये जाने की जरूरत तो है ही साथ ही लेकिन बांध प्रभावित प्रतापनगर और उत्तरकाशी गाजणा पट्टी के लोगों को मुआवजे के तौर पर क्षेत्र में आइटीआई, मेडिकल कॉलेज और अन्य संस्थान खोलने के साथ ही टिहरी बांध प्रभावितों को भूमिधरी का अधिकार दिए जाने की भी जरूरत है।
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