रुद्रप्रयाग। अक्सर आपने यही सुना होगा कि जानवरों को ही लोहे की जंजीरों में बांधकर कैद किया जाता है, लेकिन जिले में जानवर को छोड़कर पिछले 22 वर्षों से एक युवक को लोहे की जंजीरों में कैद किया गया है। यह कार्य और किसी ने नहीं, बल्कि युवक की मां ने ही किया है। आज तक इस युवक ने अपनी घर की देह के बाहर कदम नहीं रखा है। जब यह अभागी मां अपनी दुर्दशा की व्यथा बताती है तो हर कोई झकझोर हो जाता है और यही दुआ करता है कि हे भगवान ऐसा दुख जिंदगी में किसी को न मिले कि एक मां को अपने जिगर के टुकड़े को यों जंजीरों में कैद करना पड़े।
पंकज। |
जनपद के सौंदा गांव की सरोज देवी के लिये उसका बड़ा पुत्र पंकज सिंह एक अभिशाप बनकर पैदा हुआ। दरअसल, पंकज सिंह अपंग और दिव्यांग पैदा हुआ और बचपन से ही जानवरों जैसी जिंदगी जी रहा है। पंकज अपनी बीमा के कारण न बोल सकता है और न चल फिर सकता है। सिर्फ और सिर्फ पंकज हाथों के सहारे रेंगता है। गबी के चलते पंकज की मां उसका इलाज नहीं करा पा रही है। सरका हुक्मरानों और स्वयं सेवी संस्थाओं ने भी इस बेसहारा परिवार की मदद नहीं की। पंकज के पिता की मुत्यु के बाद जैसे घर में दुखों का आसमान टूट पड़ा। पेट पालने के लिये सरोज देवी को घर से बाहर निकना पड़ता है। जब सरोज देवी घर से बाहर जाती है तो वह अपने जिगर के टुकड़े को रस्सी के सहारे घर में बांध देती हैं, जिससे पंकज को जंगली जानवर या अन्य कोई नुकसान न पहुंचे। स्थिति यह है कि अपाहिज पंकज को दिन भर रस्सी से बांधकर वो ध्याड़ी मजदू करने जाती है। पंकज ने आज तक अपने घर के बाहर कदम नहीं रखा है। पंकज एक ही कमरे में रेंगता है। जिस बेटे ने अपनी मां की सेवा करनी थी, उसी मां को बेटे की सेवा करनी पड़ रही है। सुबह घर का चैका-चूल्हा करने के बाद सरोज देवी काम पर निकलती है और जिस दिन वह काम पर नहीं जाती हैं तो घर में खाने के लाले पड़ जाते हैं। सरोज देवी के दो पुत्र और भी हैं, जो दस और सातवीं में पढ़ रहे हैं। सरोज देवी कहती हैं कि चुनावों के वक्त नेता वोट मांगने तो आते हैं, किन्तु कभी मेरे अपाहिज बेटे की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। जबकि अब गांव में लोग मुझे मजदू पर भी रखने के लिए मना कर रहे हैं, क्योंकि मुझे आधे दिन में अपाहिज बेटे को देखने घर आना पड़ता है। वहीं समाज कल्याण विभाग द्वारा इस दिव्यांग बालक की पेंशन तक नहीं लगाई है, जो सरका योजनाओं पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है।
उधर, मुख्य चिकित्सा अधिका डाॅ सरोज नैथानी को तीन माह पूर्व जब अपाहिज पंकज के बारे में पता चला तो उनका दिल पसीज गया और उन्होंने उस गब परिवार के साथ ही इस बालक को आजीवन गोद लेने का फैसला कर दिया। वे हर माह दो हजार रुपये अपने वेतन से इस परिवार को आर्थिक सहायता के रूप में दे रही हैं। वहीं समय-समय पर सौंदा गांव जाकर इस परिवार का हालचाल जानती हैं।
इधर, जिलाधिका मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि मुख्य चिकित्सा अधिका क्षेत्र का दौरा कर चुकी हैं और बच्चे को भी देख चुकी हैं। एनजीओ के माध्यम से बच्चे के इलाज कराने के कोशिश की जा रही है। बच्चों को घर में बांधा गया है। अगर उसे छोड़ा जाय तो वह कहीं गिर जायेगा। बच्चे की मां उसको बांधकर रखती है। घर के पास बाउण्ड्री वाॅल बनाई जायेगी, जिससे बच्चा गिरे ना। पारिवारिक परिस्थिति इतनी खराब है कि बच्चे का इलाज होना संभव नहीं है। प्रदेश की सरकारें दिव्यांगों के लिए तरह-तरह की योजनाएं तो चला रही हैं, लेकिन उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांवों में न जाने और कितने पंकज हैं, जो जानवर जैसी जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे लोगों की जिन्दगी में सरकारें और बाल संरक्षण आयोग तिनका भर भी उजियारा नहीं ला पाई है। वहीं मानव उत्थान के लिए विभिन्न आयोग एवं संस्थाएं काम कर रही हैं, मगर उनके कार्य कागजों से निकलकर धरातल पर नहीं उतर पा रहे हैं। एक ओर सरकारें दिव्यांगों के उत्थानों के लिए तमाम तरह की योजनाएं बना रही हैं, वहीं गैर सरका संगठन भी दिव्यांगों के नाम पर तरह-तरह की ठगी करते रहते हैं, लेकिन ये योजनाएं पंकज जैसे असहाय तक क्यों नहीं पहुंच पाती हैं यह सोचनीय विषय है और हमा सरकारों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाती है।
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