मसूरी, मसूरी आज तक ब्यूरो। 22 जून 1950 को उत्तराखंड के मसूरी शहर में जन्मे पद्यश्री टॉम ऑल्टर के निधन से मसूरी में शोक की लहर दौड़ गयी। शहर के विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक संगठनो व स्थानीय निवासियों ने उनके निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। उनके निधन पर मसूरी के संस्कृतकर्मियों ने भी गहरा दुःख व्यक्त किया है।
टॉम ऑल्टर को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजली देते पालिकाध्यक्ष मन मोहन सिंह मल्ल व अन्य |
इस मौके पर पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल भावुक होते हुए कहा कि टॉम बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे उनके निधन से मसूरीवासियों को अपूर्णीय क्षति हुयी है। उन्होंने कहा की वे एक जीवन्त इंसान और महान कलाकार थे, जिसकी भरपाई नही हो सकती है।
टॉम ऑल्टर को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजली देते महिला कांग्रेस अध्यक्षा जसवीर कौर व अन्य |
टॉम आल्टर के परम मित्र व बचपन के साथी अजय मार्क ने टॉम के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी दिली इच्छा है कि टॉम का अंतिम संस्कार मसूरी में ही हो। उन्होंने बताया कि टॉम एक असहनीय पीड़ा से गुजर रहे थे। वे तीन दिन पहले उनसे अस्पताल में मिलकर आये, लेकिन उनसे टॉम की पीड़ा देखि नहीं गयी। इश्वर ऐसा दर्द किसी को न दे।
पुष्प अर्पित कर श्रधांजलि देते मसूरीवासी व विभिन्न संगठनो के लोग ।
पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला ने भी टॉम की निधन पर शोक व्यक्त किया व कहा कि वे एक जिंदादिल व मानवतावादी इंसान थे। उनके निधन से मसूरी ही नही पूरे उत्तराखंड को भारी क्षति हुयी है।
घंटाघर तोड़े जाने के विरोध में टॉम बैठ थे धरने पर ।
वहीँ उत्तराखंडी फिल्म निर्माता, निर्देशक प्रदीप भंडारी ने टॉम आल्टर के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया व कहा कि उनके जाने से हिंदी सिनेमा, टेलीविजन, खेल, नाट्य जगत, लेखक जगत सहित हिंदी, उर्दू और मातृभाषा गढ़वाली को भी अपूर्णीय क्षति हुयी है। उन्होंने कहा कि उनके रूप में पहाड़ ने सचमुच अपना एक लाल खो दिया है। भंडारी ने कहा कि टॉम ऑल्टर एक जीवंत इंसान व क्रांतिकारी कलाकार थे और जनपक्ष व समाजसेवा का नकली मुखौटा नहीं पहनते थे। वे गलत कार्यों पर खुलकर बोलते थे, यही कारण था कि मसूरी के ऐतिहासिक घंटाघर तोड़ने पर वह १२ घंटे के मौन धरने पर बैठ गए थे।
वहीँ पूर्व पालिकाध्यक्ष ओपी उनियाल, शहर कांग्रेस अध्यक्ष सतीश ढौंडियाल, महिला कांग्रेस अध्यक्षा जसवीर कौर, कैंट सभासद सुशील अग्रवाल, जावेद खान, जगजीत कुकरेजा, धर्मपाल पंवार, अमित भट्ट, मनीष कुकसाल, अरविन्द सोनकर, मुकेश धनई, संदीप साहनी सहित प्रेस क्लब मसूरी, एक्टिव मीडिया प्रेस क्लब, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, होटल रेस्टोरेंट कर्मचारी यूनियन, व्यापार संघ, होटल ऐसोशिएसन के सदस्यों ने भी टॉम के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया व उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजली दी।
टॉम आल्टर के व्यक्तिगत जीवन पर एक नजर -
टॉम आल्टर अमेरिकी मूल के एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेता व लेखक थे, जो बॉलीवुड में अपने काम के लिए जाने जाते हैं, और 2008 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
टॉम आल्टर मसूरी, उत्तराखंड, भारत के मूल निवासी हैं और अंग्रेजी और स्कॉटिश वंश के अमेरिकी ईसाई मिशनरियों के पुत्र थे और उन्होंने मुंबई और लन्दूर के हिमालयी हिल स्टेशन में कई वर्षों तक जीवन व्यतीत किया। उनके दादा दादी ओहियो, भारत से नवंबर 1916 में भारत आए, जब वे जहाज द्वारा मद्रास (अब चेन्नई) पहुंचे। वहां से, वे ट्रेन से लाहौर गए जहां वे बस गए।
भारत के विभाजन के बाद, उनके परिवार को भी दो रूपों में विभाजित किया गया - उनके दादा-दादी पाकिस्तान में बने रहे, जबकि उनके माता-पिता भारत चले गए।
वह मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल में पढ़े थे। उनके पिता ईसाई कॉलेज (ई.सी.सी.) इलाहाबाद में इतिहास और अंग्रेजी पढ़ाते थे, और उसके बाद सहारनपुर में एक विद्यालय में पढ़ाते थे। 1954 में, उनके माता-पिता ने राजपुर में एक आश्रम शुरू किया, जिसे "विशाल ध्यान केन्द्र" कहा जाता है और वे वहाँ बस गए। सभी धर्मों के लोग अध्ययन और चर्चा के लिए वहां आए। वे शुरू में बाइबिल अध्ययन उर्दू में और बाद में हिंदी में पढ़ते थे।
18 साल की उम्र में, ऑल्टर ने उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने अमेरिका छोड़ दिया और एक वर्ष के लिए येल में अध्ययन किया। हालांकि उन्हें येल में पढ़ाई की कठोरता पसंद नहीं आई और एक साल बाद लौट आए । 19 वर्ष की आयु में, अल्टर ने शिक्षक के रूप में काम किया, सेंट थॉमस स्कूल, जगधरी, हरियाणा में। उन्होंने यहां छह महीने के लिए काम किया, साथ ही साथ अपने छात्रों को क्रिकेट में प्रशिक्षण दिया। अगले साढ़े छह सालों में, अल्टर ने कई नौकरियां कीं।
वह ज्यादातर राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की फिल्में देखते थे और दोनों के अभिनय से काफी ज्यादा आकर्षित हुए थे। तब उन्होंने एक अभिनय करियर का पीछा करने का विचार किया और दो साल के लिए इस विचार पर विचार किया, जिसके बाद वह पुणे में फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के नेतृत्व में गए, जहां उन्होंने 1972 से 1974 तक रोशन तनेजा के अधीन अभिनय का अध्ययन किया। उन्होंने 2009 के साक्षात्कार में कबूल किया, "मैं अभी भी राजेश खन्ना होने का सपना देखता हु। मेरे लिए, 1970 के दशक के शुरूआत में, वह एकमात्र हीरो था, वह मेरा नायक था, और इसी कारण मैं फिल्मों में आया हूं।
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