देहरादून। पीएम नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ दौरे के बाद उनकी इस यात्रा को लेकर तो कांग्रेस ने सवालों की बौछार शुरू कर ही दी है, लेकिन अब भाजपा के सामने कांग्रेस के सवालों का जवाब देने के अलावा पार्टी के भीतर भी कुछ सवालों से जूझने की चुनौती भी खडी हो गयी है।
बता दें केदारनाथ में कार्यक्रम से संबधित जिस शिलापट्ट पर जो नाम अंकित किये गये हैं, उनको देखकर हर कोई हतप्रभ हैं। शिलापट्ट पर गढ़वाल सांसद भुवन चंद खंडूरी के नाम न होने से हर कोई हैरान तो हैं ही, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि जनरल खंडूरी को कार्यक्रम का न्यौता तक नही दिया गया। इसके साथ कार्यक्रम तीर्थ धाम का था तो शिलापट्ट से पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का नाम भी नदारद हो गया। कहा जा सकता है कि पर्यटन विभाग और मंत्री को भी हाशिये पर धकेल दिया गया। वहीं क्षेत्रीय विधायक मनोज रावत का नाम न होने पर कांग्रेस पहले ही सरकार पर हमलावर है।
अब चौंकाने वाली बात यह रही कि राज्य मंत्री धन सिंह रावत का नाम शिलापट्ट पर अंकित हो गया । हुयी न बात "बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना"। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्यूंकि राज्य मंत्री धन सिंह न तो क्षेत्र के विधायक हैं और न ही सांसद। और ना ही उनके पास पर्यटन विभाग है, यहां तक कि क्षेत्र से उनका दूर तक का नाता नही है और जिस विभाग का वह आधा अधूरा दायित्व भी संभाल रहे हैं उसका भी बाबा की नगरी और वहां पर हो रहे कार्यों से कोई लेना देना नही है।
अर्थात हाईकमान अथवा राज्य भाजपा को उनके सुर में ही सुर मिलाने को मजबूर होना पड रहा है। पहले प्रोटोकाल के मामले में सरकार को असहज कर चुके डा धन सिंह समय-समय पर अपनी ताकत का अहसास कराने में सफल रहे। अब एक बार फिर से पार्टी के भीतर ही इसे लेकर तरह-तरह की चर्चायें हैं। खासकर कांग्रेस से भगवायी हुए मित्र भी यह नही समझ पा रहे हैं कि उनकी पार्टी में कौन सी हैसियत है और है भी अथवा नही। भाजपा को अभी 2019 में लोकसभा चुनाव में उतरना है और कई मोर्चों पर जूझना है, वहीँ माना जा रहा है कि इस तरह के घटनाक्रम पार्टी कहीं न कहीं किसी आशंका और अनहोनी को भी जन्म दे रहे है। पार्टी में दबी जुबान से कई क्षत्रप इसे पनप रही महत्वाकांक्षाओं से जोडकर देख रहे है।
कभी खंडूरी है जरूरी के नारे के साथ आगे बढ रही भाजपा अब उनके नाम और दर्शन से भी गुरेज कर रही है। हाल ही में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कार्यक्रम में भी जनरल बीच में ही कार्यक्रम छोडकर चले गये, तो पीएम के केदारनाथ कार्यक्रम में शरीक तक नही हुए। ऐंसा क्यों हुआ कि जनरल केदारनाथ नही आये इसे लेकर भाजपा की ओर से कोई वक्तव्य देने की जहमत नही उठायी गयी। शायद प्रचंड बहुमत की सरकार के सामने किसी को स्पष्टीकरण देने की जरूरत ही नही।
वहीं धर्मगुरू और जमीनी आधार वाले दूसरे नेता महाराज के साथ भी लगातार कुछ ऐंसा ही अपशकुन हो रहा है। पहले उनके हैलीकाप्टर को फिजीविलिटी न होने के कारण उतरने की इजाजत न मिलने के मामले ने तूल पकड़ा था और तब मामले में महाराज ने गहरी नाराजगी जतायी थी। पार्टी सूत्रों की माने तो मोदी की पसंद होने के बावजूद महाराज को राज्य भाजपा का एक बडा धडा अभी भी पचा नही पा रहा है। और शुरू में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होने के बावजूद महाराज वर्तमान में हाशिये पर ही दिख रहे हैं।
बता दें केदारनाथ में कार्यक्रम से संबधित जिस शिलापट्ट पर जो नाम अंकित किये गये हैं, उनको देखकर हर कोई हतप्रभ हैं। शिलापट्ट पर गढ़वाल सांसद भुवन चंद खंडूरी के नाम न होने से हर कोई हैरान तो हैं ही, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि जनरल खंडूरी को कार्यक्रम का न्यौता तक नही दिया गया। इसके साथ कार्यक्रम तीर्थ धाम का था तो शिलापट्ट से पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का नाम भी नदारद हो गया। कहा जा सकता है कि पर्यटन विभाग और मंत्री को भी हाशिये पर धकेल दिया गया। वहीं क्षेत्रीय विधायक मनोज रावत का नाम न होने पर कांग्रेस पहले ही सरकार पर हमलावर है।
अब चौंकाने वाली बात यह रही कि राज्य मंत्री धन सिंह रावत का नाम शिलापट्ट पर अंकित हो गया । हुयी न बात "बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना"। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्यूंकि राज्य मंत्री धन सिंह न तो क्षेत्र के विधायक हैं और न ही सांसद। और ना ही उनके पास पर्यटन विभाग है, यहां तक कि क्षेत्र से उनका दूर तक का नाता नही है और जिस विभाग का वह आधा अधूरा दायित्व भी संभाल रहे हैं उसका भी बाबा की नगरी और वहां पर हो रहे कार्यों से कोई लेना देना नही है।
अर्थात हाईकमान अथवा राज्य भाजपा को उनके सुर में ही सुर मिलाने को मजबूर होना पड रहा है। पहले प्रोटोकाल के मामले में सरकार को असहज कर चुके डा धन सिंह समय-समय पर अपनी ताकत का अहसास कराने में सफल रहे। अब एक बार फिर से पार्टी के भीतर ही इसे लेकर तरह-तरह की चर्चायें हैं। खासकर कांग्रेस से भगवायी हुए मित्र भी यह नही समझ पा रहे हैं कि उनकी पार्टी में कौन सी हैसियत है और है भी अथवा नही। भाजपा को अभी 2019 में लोकसभा चुनाव में उतरना है और कई मोर्चों पर जूझना है, वहीँ माना जा रहा है कि इस तरह के घटनाक्रम पार्टी कहीं न कहीं किसी आशंका और अनहोनी को भी जन्म दे रहे है। पार्टी में दबी जुबान से कई क्षत्रप इसे पनप रही महत्वाकांक्षाओं से जोडकर देख रहे है।
कभी खंडूरी है जरूरी के नारे के साथ आगे बढ रही भाजपा अब उनके नाम और दर्शन से भी गुरेज कर रही है। हाल ही में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कार्यक्रम में भी जनरल बीच में ही कार्यक्रम छोडकर चले गये, तो पीएम के केदारनाथ कार्यक्रम में शरीक तक नही हुए। ऐंसा क्यों हुआ कि जनरल केदारनाथ नही आये इसे लेकर भाजपा की ओर से कोई वक्तव्य देने की जहमत नही उठायी गयी। शायद प्रचंड बहुमत की सरकार के सामने किसी को स्पष्टीकरण देने की जरूरत ही नही।
वहीं धर्मगुरू और जमीनी आधार वाले दूसरे नेता महाराज के साथ भी लगातार कुछ ऐंसा ही अपशकुन हो रहा है। पहले उनके हैलीकाप्टर को फिजीविलिटी न होने के कारण उतरने की इजाजत न मिलने के मामले ने तूल पकड़ा था और तब मामले में महाराज ने गहरी नाराजगी जतायी थी। पार्टी सूत्रों की माने तो मोदी की पसंद होने के बावजूद महाराज को राज्य भाजपा का एक बडा धडा अभी भी पचा नही पा रहा है। और शुरू में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होने के बावजूद महाराज वर्तमान में हाशिये पर ही दिख रहे हैं।
अब यह भविष्य के गर्ब में है कि ये साड़ी घटनाक्रम भाजपा व सरकार को कितना मजबूत करते हैं और आने वाले समय में इसके क्या परिणाम सामने आयेंगे।
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