जमुई संजीत कुमार बर्णवाल
जमुई। चरकापत्थर थाना क्षेत्र के सुरंग यादव 12 वर्ष के बाद एरिया कमांडर सुरंग यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पिछले छह वर्षो से पुलिस सुरंग की तलाश बेसब्री से कर रही थी। सुरंग पर खैरा, सोनो, चकाई, चंद्रमंडीह एवं झाझा थाने में लगभग दो दर्जन मामले दर्ज हैं। पुलिस के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। सुरंग का साम्राज्य पड़ोसी जिले नवादा की सीमा से चकाई से सटे झारखंड की सीमा तक था। बिना उसकी इजाजत कोई भी कार्य नहीं होता था या यूं कहें कि इस इलाके में सुरंग की समानांतर व्यवस्था काम करती थी। 12 वर्ष पहले सुरंग नक्सली संगठन से जुड़ा था। पहले तो वह एक आम सदस्य बनकर कार्य कर रहा था। हाल के कुछ वर्षों में संगठन ने उसे पावर दिया और वह आतंक का पर्याय बन बैठा। बीते 18 अक्टूबर की रात कुणाल यादव की हत्या के बाद उसका खौफ इलाके में छा गया था। एक ठेकेदार के मुंशी संजय पांडेय की गला रेतकर की गई हत्या के बाद नक्सलियों से संपर्क करने की हिम्मत किसी ने नहीं उठाई। खौफ इस बात को लेकर हो गया था कि बुलाकर गला रेत दिया जाएगा। कोई भी उससे मिलने में कतराने लगा था। पहले जिस इलाके की कमान एरिया कमांडर सिद्धू कोड़ा ने संभाल रखी थी उस इलाके की कमान संगठन ने सुरंग को सौंप दिया। सिद्धू कोड़ा थोड़ा सॉफ्ट बताया जाता था, जबकि सुरंग हार्डकोर था। किसी को नहीं बख्सने की आदत ने उसे आतंक का पर्याय बना दिया था। संगठन से जुड़कर फर्श से अर्श तक पहुंचने वाला दुर्दांत नक्सली सुरंग ने आखिर आत्मसमर्पण क्यों किया,
इस बात को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। हालांकि इसके पीछे की मजबूरी पर उसने अपना मुंह अभी तक नहीं खोला है। पुलिस संगठन से जुड़े राज उगलवाने की फिराक में लगी है। सुरंग को इस बात की आशंका थी कि कहीं आत्मसमर्पण के दौरान पुलिस उसका एनकाउंटर न कर दे। हालांकि ऐसा होना नहीं था। पुलिस के लिए इस बात से बढ़कर खुशी क्या होगी जब इलाके का आतंक सुरंग स्वयं चलकर पुलिस के पास पहुंचा। संगठन में मारक दस्ते का नेतृत्व करने वाला सुरंग यादव की तूती इस कदर बोलती थी कि जिसे वह फोन कर देता उसका हुक्का-पानी बंद हो जाता था। लगातार कार्रवाई को सफलतापूर्वक अंजाम देकर सुरंग ने संगठन में अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी।
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