• पर्यावरण, जैव विविधता का संरक्षण व स्थानीय लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, दोनों जरूरी

  • दून विवि में ‘‘हिमालयी क्षेत्रों में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की चुनौतियां’’ विषय पर सेमीनार आयोजित

देहरादून। राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने कहा कि विकास और पर्यावरण मे संतुलन स्थापित करना होगा। सस्टेनेबल डेवलपमेंट की अवधारणा को अपनाना होगा। ऐसी नीति अपनानी होगी जिससे हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आधारभूत आवश्यकताएं भी पूरी हों और पर्यावरण व जैव विविधता का संरक्षण भी सुनिश्चित हो। राज्यपाल, दून विश्वविद्यालय में ‘‘हिमालयी क्षेत्रों में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की चुनौतियां’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। 
दून विश्वविद्यालय में ‘‘हिमालयी क्षेत्रों में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की चुनौतियां’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा का दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन करते राज्यपाल।
राज्यपाल ने कहा कि हिमालय केवल एक भू-स्थलाकृति ही नहीं है बल्कि यह मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र भी है। यहां हमारी सनातन धर्म व संस्कृति की धारा सदियों से प्रवाहित होती रही है। हिमालय का अध्ययन केवल एक भौगोलिक इकाई के वैज्ञानिक विश्लेषण तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। हिमालय वस्तुतः समृद्ध भारतीय संस्कृति की आत्मा है। 
 
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड एक प्रमुख हिमालयी राज्य है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव उत्तराखण्ड में भी देखने को मिल रहा है। हर साल बादल फटने, भूस्खलन जैसी दैवीय आपदाएं की घटनाएं हो रही हैं। अगर हमें हिमालय, यहां के वनों, नदियों, जीव जंतुओं, जैव विविधता की रक्षा करनी है तो स्थानीय लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन बड़ी समस्या है। राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण पहल करते हुए पौड़ी में पलायन आयोग स्थापित किया है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। 
 
राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालयों में ज्ञान का सृजन होता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस तीन दिवसीय सेमीनार में वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के गम्भीर मंथन से कुछ ठोस निष्कर्ष अवश्य निकलेंगे जो कि नीति निर्धारण में सहायक होंगे। 
 
केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री श्री अजय टम्टा ने कहा कि ऐसी तकनीक के विकास पर ध्यान देना चाहिए जिससे दैवीय आपदाओं का कुछ समय पहले पूर्वानुमान लगाया जा सके। विकास व पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं। केंद्र सरकार हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण व स्थानीय लोगों की विकास की आवश्यकता को पूरा करने के लिए गम्भीर है। केंद्र सरकार ने उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र खोलने की आवश्यकता महसूस करते हुए जी.बी.पंत हिमालयी पर्यावरण व विकास संस्थान को जी.बी.पंत हिमालयी पर्यावरण व स्थायी विकास के राष्ट्रीय संस्थान के रूप में अपग्रेड किया है। 
 
श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेमीनार, 29 नवम्बर से 1 दिसम्बर तक चलेगा जिसमें वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों द्वारा व्यापक विचार विमर्श किया जाएगा। सेमीनार के उद्घाटन के अवसर पर विधायक श्री दिलीप सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव डाॅ. रणवीर सिंह, सचिव रविनाथ रमन, विज्ञान व तकनीक विभाग, भारत सरकार से आए वैज्ञानिक डाॅ. अखिलेश गुप्ता, श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. यू.एस.रावत, दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0कुसुम अरूणाचलम सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
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