आचार्य चाणक्य को जितना सम्मान राजनीति में मिलता है, उतना ही अधिक सफल जीवन के लिए उनके द्वारा दिए गए सूत्रों को मान्यता प्राप्त है। चाणक्य की नीति मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए है, इन्हीं में एक है सांसारिक जीवन में अपने कर्मों का फल प्राप्त करने के प्रति व्यक्ति का नजरिया।
अक्सर हमें लगता है कि बेगुनाह होने के बावजूद हमें बुरे फल मिले, जबकि वास्तव में वह आपके ही बुरे कर्मों का सही हिसाब होता है। चाणक्य के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यक्ति के ये कर्म केवल उसके स्वयं के ना होकर उससे जुड़े लोगों के भी होते हैं।
यही कारण है कि कई बार स्वयं कोई बुरा कर्म ना करने के बाद भी वह सजा का हकदार बनता है और भुगतता भी है। इसलिए अगर आपको लगता है कि बिना किसी गलती के आपको कोई भुगतान करना पड़ा तो अवश्य सोचना चाहिए कि कहीं आपसे जुड़े किसी अन्य ने तो ऐसी कोई गलती नहीं की है! सबसे बड़ी बात कि आप वह सजा भुगतने के लिए दया पात्र भी नहीं बन सकते….क्यों?
कर्त्तव्य से जुड़े कर्मों के फल
इसका साफ और सीधा सा जवाब यही है…क्योंकि संसार में रहते हुए आपको कुछ कर्तव्यों का पालन करना होता है। चाणक्य के अनुसार आपसे जुड़े हर व्यक्ति को सही मार्ग दिखाना ही नहीं, बल्कि सही मार्ग पर चलने में उनकी मदद करना भी आपका परम कर्तव्य है।
कर्त्तव्य से जुड़े कर्मों के फल
इसलिए भले ही वह आप ना हों, लेकिन अगर आपसे संबंधित कोई भी व्यक्ति किसी बुरे कार्य या अधर्म में लिप्त है, तो आप भी उसके दंड के बराबर के पात्र हैं। इसे समझाने कि लिए आचार्य चाणक्य ने कई उदाहरण दिए हैं।
फल भुगतान
इसका एक अर्थ यह भी है कि किसी भी लीडर, नेता या अभिभावक को अपने अंदर काम कर रही टीम, जनता या बच्चों के प्रति भी पूरी निष्ठा से अपनी हर प्रकार की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। ऐसा ना करने की सूरत में भविष्य में उन्हें स्वयं ही इनके गलय कार्यों का फल भुगतना करना पड़ता है।
यह नियम किसी छोटे स्तर के व्यापार से बड़े, स्थायी संस्थानों तक के लिए लागू होते हैं। यही कारण है कि कर्मचारियों की अकर्मण्यता की सूरत में इसका भुगतान उसके मालिक को करना पड़ता है।
पति-पत्नी संबंध
इसी प्रकार पति-पत्नी के संबंधों में भी दोनों को एक-दूसरे के कार्यों के प्रति पूर्ण रूप से जिम्मेदार और सजग होना चाहिए, वरना यह इन दोनों के लिए ही नुकसानदेह है। पति या पत्नी दोनों में कोई एक भी किसी गलत कार्य में लिप्त हुआ या किसी एक ने भी अपनी जिम्मेदारी ठीक प्रकार से नहीं निभायी, तो इसके बुरे परिणाम पति-पत्नी दोनों को ही भुगतने पड़ते हैं।
गुरु-शुष्य संबंध
गुरु-शुष्य परंपरा में भी गुरु ने अगर शिष्य को सही शिक्षा देने के प्रति पूर्ण निष्ठा नहीं दिखाई, तो आगे चलकर वह उसकी बदनामी का कारण भी बन सकता है।
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