ये तीसरा मौका है जब आईसीसी की बेहद प्रतिष्ठित टूर्नामेंट चैंपियस ट्रॉफी का आयोजन इंग्लैंड में हो रहा है. अगर भारत के लिए पिछली बार यानी 2013 का टूर्नामेंट सबसे यादगार रहा है तो पहली बार इंग्लैंड में इस टूर्नामेंट का आयोजन कैरेबियाई क्रिकेट के लिए एक सुनहरी याद भी है.
वेस्ट इंडीज़ बिन सब सूना....
1975 और 1979 में दो लगातार वर्ल्ड कप जीतने के बाद वेस्टइंडीज़ की पराक्रमी टीम 1983 में वर्ल्ड कप के फाइनल में भी पहुंची. लेकिन, एक बार इंग्लैंड में वो फाइनल क्या हारे वन-डे क्रिकेट से धीरे-धीरे इस टीम की हस्ती ही घटती चली गई.
2004 में ब्रायन लारा की टीम ने किया था चमत्कार!
लेकिन 2004 में ब्रायन लारा की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ की टीम ने चमत्कारिक अंदाज़ में फाइनल में इंग्लैंड को हराकर ट्रॉफी जीती थी. लगभग मैच में रोमांच वैसा ही था जैसा कि 2013 के फाइनल में भारत और मेज़बान इंग्लैंड के बीच देखने को मिला था. जीत के लिए 218 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज़ ने 147 रन पर आंठवा विकेट शिवनारायण चन्द्रपॉल के तौर पर खोया तो ऐसा लगा कि वेस्टइंडीज़ की हार तय हो गई. लेकिन, इसके बाद कोर्टनी ब्राउन और इयन ब्रैडशॉ ने असाधारण साझेदारी करते हुए मेज़बान को छकाया. इस जीत के बाद ऐसा लगा वेस्टइंडीज़ क्रिकेट का फिर से उदय हो गया.
उतार-चढ़ाव बन गया है कैरेबियाई क्रिकेट की नई पहचान
पिछले दो दशक में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद वेस्टइंडीज़ की टीम अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगातार अपनी खोयी साख को हासिल करने की कोशिश में जुटी रही. टेस्ट क्रिकेट में भले ही वेस्टइंडीज़ का संघर्ष ख़त्म नहीं होता दिख रहा है लेकिन दो बार टी20 वर्ल्ड कप में चैंपियन बनकर कैरेबियाई टीम ने ये दिखाया कि छोटे फॉर्मेट में ये अब भी अच्छी टीम है.
6 महीने पहले वेस्टइंडीज़ से छूटी चैंपियंस ट्रॉफी की बस!
बहरहाल, वन-डे क्रिकेट में इस टीम के खेल में गिरावट का सिलसिला बरकरार है. आईसीसी के नए नियमों के मुताबिक सिर्फ दुनिया की टॉप 8 टीमें ही चैंपियंस ट्रॉफी में शिरकत कर सकती हैं और इसके चलते 9वें पायदान पर चलने वाली कैरेबियाई टीम के लिए इस टूर्नामेंट में खेलने का रास्ता 6 महीने पहले ही ख़त्म हो गया था.
मेज़बान इंग्लैंड को खलेगी कैरेबियाई टीम की कमी...
लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर पहली बार आईसीसी एक ऐसे टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रही है. ख़ासकर, इंग्लैंड में जहां पर कैरेबियाई मूल के काफी लोग क्रिकेट को उतना ही प्यार करते हैं और अतीत के गौरव को तलाशने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर चैंपिंयस ट्रॉफी थोड़ी फीकी होगी. ना तो आपको चैंपियंस डांस देखने को मिलेगा और ना ही बिंदास और दिलदार खिलाड़ी.
ब्राज़ील के बगैर फुटबॉल कैसा, वेस्टइंडीज़ के बगैर क्रिकेट भी फीका..
जिस तरह से भारत के क्रिकेटर इस खेल को एक अलग रंग देते हैं, पाकिस्तान जुझारु छवि पेश करता है, इंग्लैंड संस्कृति की झलक देता है, ऑस्ट्रेलिया जीतने की आदत को दर्शाता है तो वेस्टइंडीज़ का नज़रिया ये दिखाता है कि ये खेल है और खेल सिर्फ मस्त होकर ही खेला जाता है.
कैरिबियाई संगीत और नाच के बगैर वाकई इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी का मज़ा आधा होगा. ये तो कुछ ऐसा ही है कि दुनिया के किसी हिस्से में एक बहुत बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन हो रहा हो और उसमें ब्राज़ील की ना तो कोई टीम हो और ना ही इसका कोई खिलाड़ी. ये ठीक है कि ब्राज़ील की टीम की हैसियत फुटबॉल में इतनी कमज़ोर नहीं है जैसी हालत आज मौजूदा कैरेबियाई क्रिकेट की है. लेकिन, ऐतिहासिक लहज़े में क्रिकेट में वेस्टइंडीज़ टीम की अहमियत कुछ वैसी ही है.ये तीसरा मौका है जब आईसीसी की बेहद प्रतिष्ठित टूर्नामेंट चैंपियस ट्रॉफी का आयोजन इंग्लैंड में हो रहा है. अगर भारत के लिए पिछली बार यानी 2013 का टूर्नामेंट सबसे यादगार रहा है तो पहली बार इंग्लैंड में इस टूर्नामेंट का आयोजन कैरेबियाई क्रिकेट के लिए एक सुनहरी याद भी है.
वेस्ट इंडीज़ बिन सब सूना....
1975 और 1979 में दो लगातार वर्ल्ड कप जीतने के बाद वेस्टइंडीज़ की पराक्रमी टीम 1983 में वर्ल्ड कप के फाइनल में भी पहुंची. लेकिन, एक बार इंग्लैंड में वो फाइनल क्या हारे वन-डे क्रिकेट से धीरे-धीरे इस टीम की हस्ती ही घटती चली गई.
2004 में ब्रायन लारा की टीम ने किया था चमत्कार!
लेकिन 2004 में ब्रायन लारा की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ की टीम ने चमत्कारिक अंदाज़ में फाइनल में इंग्लैंड को हराकर ट्रॉफी जीती थी. लगभग मैच में रोमांच वैसा ही था जैसा कि 2013 के फाइनल में भारत और मेज़बान इंग्लैंड के बीच देखने को मिला था. जीत के लिए 218 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज़ ने 147 रन पर आंठवा विकेट शिवनारायण चन्द्रपॉल के तौर पर खोया तो ऐसा लगा कि वेस्टइंडीज़ की हार तय हो गई. लेकिन, इसके बाद कोर्टनी ब्राउन और इयन ब्रैडशॉ ने असाधारण साझेदारी करते हुए मेज़बान को छकाया. इस जीत के बाद ऐसा लगा वेस्टइंडीज़ क्रिकेट का फिर से उदय हो गया.
उतार-चढ़ाव बन गया है कैरेबियाई क्रिकेट की नई पहचान
पिछले दो दशक में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद वेस्टइंडीज़ की टीम अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगातार अपनी खोयी साख को हासिल करने की कोशिश में जुटी रही. टेस्ट क्रिकेट में भले ही वेस्टइंडीज़ का संघर्ष ख़त्म नहीं होता दिख रहा है लेकिन दो बार टी20 वर्ल्ड कप में चैंपियन बनकर कैरेबियाई टीम ने ये दिखाया कि छोटे फॉर्मेट में ये अब भी अच्छी टीम है.
6 महीने पहले वेस्टइंडीज़ से छूटी चैंपियंस ट्रॉफी की बस!
बहरहाल, वन-डे क्रिकेट में इस टीम के खेल में गिरावट का सिलसिला बरकरार है. आईसीसी के नए नियमों के मुताबिक सिर्फ दुनिया की टॉप 8 टीमें ही चैंपियंस ट्रॉफी में शिरकत कर सकती हैं और इसके चलते 9वें पायदान पर चलने वाली कैरेबियाई टीम के लिए इस टूर्नामेंट में खेलने का रास्ता 6 महीने पहले ही ख़त्म हो गया था.
मेज़बान इंग्लैंड को खलेगी कैरेबियाई टीम की कमी...
लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर पहली बार आईसीसी एक ऐसे टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रही है. ख़ासकर, इंग्लैंड में जहां पर कैरेबियाई मूल के काफी लोग क्रिकेट को उतना ही प्यार करते हैं और अतीत के गौरव को तलाशने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर चैंपिंयस ट्रॉफी थोड़ी फीकी होगी. ना तो आपको चैंपियंस डांस देखने को मिलेगा और ना ही बिंदास और दिलदार खिलाड़ी.
ब्राज़ील के बगैर फुटबॉल कैसा, वेस्टइंडीज़ के बगैर क्रिकेट भी फीका..
जिस तरह से भारत के क्रिकेटर इस खेल को एक अलग रंग देते हैं, पाकिस्तान जुझारु छवि पेश करता है, इंग्लैंड संस्कृति की झलक देता है, ऑस्ट्रेलिया जीतने की आदत को दर्शाता है तो वेस्टइंडीज़ का नज़रिया ये दिखाता है कि ये खेल है और खेल सिर्फ मस्त होकर ही खेला जाता है.
कैरिबियाई संगीत और नाच के बगैर वाकई इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी का मज़ा आधा होगा. ये तो कुछ ऐसा ही है कि दुनिया के किसी हिस्से में एक बहुत बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन हो रहा हो और उसमें ब्राज़ील की ना तो कोई टीम हो और ना ही इसका कोई खिलाड़ी. ये ठीक है कि ब्राज़ील की टीम की हैसियत फुटबॉल में इतनी कमज़ोर नहीं है जैसी हालत आज मौजूदा कैरेबियाई क्रिकेट की है. लेकिन, ऐतिहासिक लहज़े में क्रिकेट में वेस्टइंडीज़ टीम की अहमियत कुछ वैसी ही है.
वेस्ट इंडीज़ बिन सब सूना....
1975 और 1979 में दो लगातार वर्ल्ड कप जीतने के बाद वेस्टइंडीज़ की पराक्रमी टीम 1983 में वर्ल्ड कप के फाइनल में भी पहुंची. लेकिन, एक बार इंग्लैंड में वो फाइनल क्या हारे वन-डे क्रिकेट से धीरे-धीरे इस टीम की हस्ती ही घटती चली गई.
2004 में ब्रायन लारा की टीम ने किया था चमत्कार!
लेकिन 2004 में ब्रायन लारा की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ की टीम ने चमत्कारिक अंदाज़ में फाइनल में इंग्लैंड को हराकर ट्रॉफी जीती थी. लगभग मैच में रोमांच वैसा ही था जैसा कि 2013 के फाइनल में भारत और मेज़बान इंग्लैंड के बीच देखने को मिला था. जीत के लिए 218 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज़ ने 147 रन पर आंठवा विकेट शिवनारायण चन्द्रपॉल के तौर पर खोया तो ऐसा लगा कि वेस्टइंडीज़ की हार तय हो गई. लेकिन, इसके बाद कोर्टनी ब्राउन और इयन ब्रैडशॉ ने असाधारण साझेदारी करते हुए मेज़बान को छकाया. इस जीत के बाद ऐसा लगा वेस्टइंडीज़ क्रिकेट का फिर से उदय हो गया.
उतार-चढ़ाव बन गया है कैरेबियाई क्रिकेट की नई पहचान
पिछले दो दशक में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद वेस्टइंडीज़ की टीम अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगातार अपनी खोयी साख को हासिल करने की कोशिश में जुटी रही. टेस्ट क्रिकेट में भले ही वेस्टइंडीज़ का संघर्ष ख़त्म नहीं होता दिख रहा है लेकिन दो बार टी20 वर्ल्ड कप में चैंपियन बनकर कैरेबियाई टीम ने ये दिखाया कि छोटे फॉर्मेट में ये अब भी अच्छी टीम है.
6 महीने पहले वेस्टइंडीज़ से छूटी चैंपियंस ट्रॉफी की बस!
बहरहाल, वन-डे क्रिकेट में इस टीम के खेल में गिरावट का सिलसिला बरकरार है. आईसीसी के नए नियमों के मुताबिक सिर्फ दुनिया की टॉप 8 टीमें ही चैंपियंस ट्रॉफी में शिरकत कर सकती हैं और इसके चलते 9वें पायदान पर चलने वाली कैरेबियाई टीम के लिए इस टूर्नामेंट में खेलने का रास्ता 6 महीने पहले ही ख़त्म हो गया था.
मेज़बान इंग्लैंड को खलेगी कैरेबियाई टीम की कमी...
लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर पहली बार आईसीसी एक ऐसे टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रही है. ख़ासकर, इंग्लैंड में जहां पर कैरेबियाई मूल के काफी लोग क्रिकेट को उतना ही प्यार करते हैं और अतीत के गौरव को तलाशने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर चैंपिंयस ट्रॉफी थोड़ी फीकी होगी. ना तो आपको चैंपियंस डांस देखने को मिलेगा और ना ही बिंदास और दिलदार खिलाड़ी.
ब्राज़ील के बगैर फुटबॉल कैसा, वेस्टइंडीज़ के बगैर क्रिकेट भी फीका..
जिस तरह से भारत के क्रिकेटर इस खेल को एक अलग रंग देते हैं, पाकिस्तान जुझारु छवि पेश करता है, इंग्लैंड संस्कृति की झलक देता है, ऑस्ट्रेलिया जीतने की आदत को दर्शाता है तो वेस्टइंडीज़ का नज़रिया ये दिखाता है कि ये खेल है और खेल सिर्फ मस्त होकर ही खेला जाता है.
कैरिबियाई संगीत और नाच के बगैर वाकई इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी का मज़ा आधा होगा. ये तो कुछ ऐसा ही है कि दुनिया के किसी हिस्से में एक बहुत बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन हो रहा हो और उसमें ब्राज़ील की ना तो कोई टीम हो और ना ही इसका कोई खिलाड़ी. ये ठीक है कि ब्राज़ील की टीम की हैसियत फुटबॉल में इतनी कमज़ोर नहीं है जैसी हालत आज मौजूदा कैरेबियाई क्रिकेट की है. लेकिन, ऐतिहासिक लहज़े में क्रिकेट में वेस्टइंडीज़ टीम की अहमियत कुछ वैसी ही है.ये तीसरा मौका है जब आईसीसी की बेहद प्रतिष्ठित टूर्नामेंट चैंपियस ट्रॉफी का आयोजन इंग्लैंड में हो रहा है. अगर भारत के लिए पिछली बार यानी 2013 का टूर्नामेंट सबसे यादगार रहा है तो पहली बार इंग्लैंड में इस टूर्नामेंट का आयोजन कैरेबियाई क्रिकेट के लिए एक सुनहरी याद भी है.
वेस्ट इंडीज़ बिन सब सूना....
1975 और 1979 में दो लगातार वर्ल्ड कप जीतने के बाद वेस्टइंडीज़ की पराक्रमी टीम 1983 में वर्ल्ड कप के फाइनल में भी पहुंची. लेकिन, एक बार इंग्लैंड में वो फाइनल क्या हारे वन-डे क्रिकेट से धीरे-धीरे इस टीम की हस्ती ही घटती चली गई.
2004 में ब्रायन लारा की टीम ने किया था चमत्कार!
लेकिन 2004 में ब्रायन लारा की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ की टीम ने चमत्कारिक अंदाज़ में फाइनल में इंग्लैंड को हराकर ट्रॉफी जीती थी. लगभग मैच में रोमांच वैसा ही था जैसा कि 2013 के फाइनल में भारत और मेज़बान इंग्लैंड के बीच देखने को मिला था. जीत के लिए 218 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज़ ने 147 रन पर आंठवा विकेट शिवनारायण चन्द्रपॉल के तौर पर खोया तो ऐसा लगा कि वेस्टइंडीज़ की हार तय हो गई. लेकिन, इसके बाद कोर्टनी ब्राउन और इयन ब्रैडशॉ ने असाधारण साझेदारी करते हुए मेज़बान को छकाया. इस जीत के बाद ऐसा लगा वेस्टइंडीज़ क्रिकेट का फिर से उदय हो गया.
उतार-चढ़ाव बन गया है कैरेबियाई क्रिकेट की नई पहचान
पिछले दो दशक में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद वेस्टइंडीज़ की टीम अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगातार अपनी खोयी साख को हासिल करने की कोशिश में जुटी रही. टेस्ट क्रिकेट में भले ही वेस्टइंडीज़ का संघर्ष ख़त्म नहीं होता दिख रहा है लेकिन दो बार टी20 वर्ल्ड कप में चैंपियन बनकर कैरेबियाई टीम ने ये दिखाया कि छोटे फॉर्मेट में ये अब भी अच्छी टीम है.
6 महीने पहले वेस्टइंडीज़ से छूटी चैंपियंस ट्रॉफी की बस!
बहरहाल, वन-डे क्रिकेट में इस टीम के खेल में गिरावट का सिलसिला बरकरार है. आईसीसी के नए नियमों के मुताबिक सिर्फ दुनिया की टॉप 8 टीमें ही चैंपियंस ट्रॉफी में शिरकत कर सकती हैं और इसके चलते 9वें पायदान पर चलने वाली कैरेबियाई टीम के लिए इस टूर्नामेंट में खेलने का रास्ता 6 महीने पहले ही ख़त्म हो गया था.
मेज़बान इंग्लैंड को खलेगी कैरेबियाई टीम की कमी...
लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर पहली बार आईसीसी एक ऐसे टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रही है. ख़ासकर, इंग्लैंड में जहां पर कैरेबियाई मूल के काफी लोग क्रिकेट को उतना ही प्यार करते हैं और अतीत के गौरव को तलाशने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन, वेस्टइंडीज़ के बगैर चैंपिंयस ट्रॉफी थोड़ी फीकी होगी. ना तो आपको चैंपियंस डांस देखने को मिलेगा और ना ही बिंदास और दिलदार खिलाड़ी.
ब्राज़ील के बगैर फुटबॉल कैसा, वेस्टइंडीज़ के बगैर क्रिकेट भी फीका..
जिस तरह से भारत के क्रिकेटर इस खेल को एक अलग रंग देते हैं, पाकिस्तान जुझारु छवि पेश करता है, इंग्लैंड संस्कृति की झलक देता है, ऑस्ट्रेलिया जीतने की आदत को दर्शाता है तो वेस्टइंडीज़ का नज़रिया ये दिखाता है कि ये खेल है और खेल सिर्फ मस्त होकर ही खेला जाता है.
कैरिबियाई संगीत और नाच के बगैर वाकई इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी का मज़ा आधा होगा. ये तो कुछ ऐसा ही है कि दुनिया के किसी हिस्से में एक बहुत बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन हो रहा हो और उसमें ब्राज़ील की ना तो कोई टीम हो और ना ही इसका कोई खिलाड़ी. ये ठीक है कि ब्राज़ील की टीम की हैसियत फुटबॉल में इतनी कमज़ोर नहीं है जैसी हालत आज मौजूदा कैरेबियाई क्रिकेट की है. लेकिन, ऐतिहासिक लहज़े में क्रिकेट में वेस्टइंडीज़ टीम की अहमियत कुछ वैसी ही है.
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